शनिवार, 16 अप्रैल 2011

अंगना बुहार दूँ

प्रिय तुम आओ तो, अंगना बुहार दूँ 
पथ की चुभन को, होठों से संहार दूँ 
थकन बरसों बरस सी चिपक गई 
आओ तो उस सौतन को उतार दूँ 

तुम संग बीती, दो घड़ी थी मेरे साथ 
पवन संग खुशबु बनी, कुमकुम माथ
पथरीले पथ पथराई, फैली थी आँखें 
नम हो बह निकली, दिखो निहार लूँ 

सुहागन तू कैसी, ताने बने विश्वास 
लौटेगा अंगना सावन, भीगी थी आस
गेसू खुले पागल धारा, तोड़े थी किनारे
तनिक द्वारे  तो ठहरो, नजर उतार दूँ     

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

वाह! बहुत बढ़िया..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर।