हम धरती के बोझ हैं बाबा
हम धरती के बोझ
भ्रष्टाचारी हैं हम पक्के
दूजी न कोई सोच बाबा
चाहे जो तुम काम बोलो
हम करें नोटों से तोलो
अपने रिश्ते नाते हैं सब
बस तुम जाओ तिजोरी खोलो
मंत्री हो या कोई संतरी
रखे हम सबकी जंत्री
आदेश न्यायिक पास करालो
अपना है यही काम रोज बाबा
हम धरती के बोझ
नेता हो या अभिनेता हो
घूस न चाहे कोई लेता हो
सोफे पर या मेज के नीचे
पैसे रखें दांतों में भींचे
कैसे कब किसको पकड़ें
अपने हाथ हैं सबसे तगड़े
काम होगा विश्वास हमारा
कलदार पूजें रोज हम बाबा
हम धरती के बोझ
3 टिप्पणियां:
सच कहा, बोझ ही तो बन कर रह गए हैं हम !
हम धरती पर बोझ,
फिर काहे को सोच।
सच कहा है यह भ्रष्टाचार बोझ बन कर ही रह गया है..बहुत सार्थक रचना
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