कलम कवि की
कलम कवि की
रविवार, 17 अप्रैल 2011
प्रिय
सावन सुखा झुलस गया
पतझड़ आया ठूंठ बनाया
जेष्ठ में भीग भागी गर्मी
पोह भाता था गुजर गया
ऑंखें सावन पतझड़ होठ
पोह से अंग जेष्ठ आगोश
बसंती उम्मीद जग खामोश
आत्मा तरसी बदली छायी
2 टिप्पणियां:
प्रवीण पाण्डेय
ने कहा…
बेहतरीन, प्रकृति मन की स्थिति कैसे स्पष्ट कर देती है।
18 अप्रैल 2011 को 7:44 am बजे
Shah Nawaz
ने कहा…
बहुत बढ़िया....
18 अप्रैल 2011 को 9:19 am बजे
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2 टिप्पणियां:
बेहतरीन, प्रकृति मन की स्थिति कैसे स्पष्ट कर देती है।
बहुत बढ़िया....
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