सोमवार, 18 अप्रैल 2011

अँधेरा

पौ फटे संजोये
बीती थकन,
धधकती अग्न  
फटकार, दुत्कार 
तिरस्कार 
मानसिक शारीरिक 
मार और मार

अँधेरा लिए राह  में
देने पुन: संजोये
प्यार, दुलार 
हिलोरे खेल 
बिन, जीत हार 
कोख का पुरस्कार 
चूमती ह्रदय की चट्खार  

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

शब्दों की महकती फुहार।