शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

अभिनेत्री हूँ

तालिओं की गडगडाहट
लोगो की वाहवाही
बिजली की चकाचोंध
चमक के बीच
मंच पर खड़ी
मै, एक अभिनेत्री
मेरा घर है ये मंच
ये दुनिया परिवार
लेकिन
मंच की दुनिया से बाहर
मै एक तमाशा
मेरा बिखरा हुआ परिवार
मुझसे दूर बहुत दूर
केवल कुछ नज़रें
ललचाई सी
ताकती हुई मेरा शरीर
आ रही हैं करीब
ये समाज जो कल तक मेरे साथ था
आज क्यूँ नहीं देख रहा
मेरी किस्मत बदनसीब


मै अकेली विवश बेसहारा
ढूँढती हुई किनारा
आ पहुंची समाज में
परन्तु, ये घबरा रहा है
डर रहा है, 

मुझे अपनाने में
क्यूँ
 

क्या इसलिये
क्यूँ मैंने समाज के
सामने
समाज का चेहरा प्रस्तुत किया
और सचाई कडवी होती है
या इसलिये की मै
ऐसे समाज में आ गई हूँ
जिसे दरिंदो का समाज कहा जाता है
या वो फूल हूँ जिसे सिर्फ पैरों तले रौंदा जाता है

मेरी भी
इच्छाएं है तमन्नाएँ है
किसी की बीवी बनू
माँ बनू किसी की
क्या तुम्हारी
इच्छाएं, इच्छाएं हैं मेरी इच्छा कुछ नहीं
क्या मेरी दुनिया मंच की दुनिया, ये समाज कुछ नहीं

जब मेरे सर से उठा साया
मेरे बाप का
तब सब थे कहाँ
ये समाज ही तो है
जिसने मुझे पहूंचाया यहाँ
मै बनी सहारा अपनी माँ और बहिनों का
पर इस समाज ने
पहनाया ताज मुझे अपमान के गहनों का
वाह रे समाज, क्या ढंग बनाया
भाई ने ही, बहिन के नाम पर
धब्बा लगाया
कीचड़ से बचाना तो दूर
बल्कि दलदल मैं फंसाया
आज मुझे मेरा सहारा मिल रहा है
मगर समाज भटका रहा है उसकी भी डगर
तुम कुछ दे नहीं सकते, तो छीनो  तो मत
न जाने कब दूर होगी तुम्हारी हवस की ये लत
 

इससे तो मंच की दुनिया अच्छी है
जहाँ सच्चा कुछ नहीं
बहार आकर देखा
तो समाज से बुरा कुछ नहीं

मुझे गर्व है
मै एक स्त्री हूँ
जो समाज में नहीं
परन्तु मंच की अभिनेत्री हूँ
अपने आप को ढालूंगी
उस सांचे में
जो समाज का जवाब होगा
एक तमाचे में
हाँ

मै एक अभिनेत्री हूँ