रविवार, 24 अप्रैल 2011

कान्हा अब क्यूँ ना आये

हो मैया मोरी कान्हा अब क्यूँ ना आये
ओरी माँ मेरी कान्हा अब क्यूँ ना आये

ग्वाल बनू और बाल संग खेलूं
तू बिलोये मै माखन लेलूं
मेरा भी जी चाहे 

हो मैया मोरी कान्हा अब क्यूँ ना आये
ओरी माँ मेरी कान्हा अब क्यूँ ना आये

जमुना जांऊ गोते लगाऊं
मटकी फोडूं और छुप जांऊ
तू आवे धमकावे

हो मैया मोरी कान्हा अब क्यूँ ना आये
ओरी माँ मेरी कान्हा अब क्यूँ ना आये

कदम्ब चढ़ जाएँ गोपियाँ नहायें
वस्त्र चुराए कान्हा और वो लज्जायें
कान्हा की लीलायें 
हम भी देखनो चाहें

हो मैया मोरी कान्हा अब क्यूँ ना आये
ओरी माँ मेरी कान्हा अब क्यूँ ना आये

काहे जन्मा पथरान मैं मै
माटी मथुरा ना चख पायो
ब्रज मोहे कह कह चिढावे 

हो मैया मोरी कान्हा अब क्यूँ ना आये
ओरी माँ मेरी कान्हा अब क्यूँ ना आये

कान्हा सखा का रूप मै पातो
सुदामा के संग मै भी रिझातो
और कछु ना मै चाहतो

हो मैया मोरी कान्हा अब क्यूँ ना आये
ओरी माँ मेरी कान्हा अब क्यूँ ना आये

कान्हा सुनता है सबकी सुनो
जो कछु चाहो वासे मांग लीनो
राजीव कही कही गावे

हो मैया मोरी कान्हा अब क्यूँ ना आये
ओरी माँ मेरी कान्हा अब क्यूँ ना आये

4 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

आपका गायन सुन्दर
आपकी चाहत सुन्दर
सुन्दर है आपकी यह प्रस्तुति
जिससे हर्षित हो मेरा मन
करता है मस्ती ही मस्ती

आपके ब्लॉग पर मुझे आने में देरी हुई इसका मुझे अफ़सोस है.
पर आप देर न लगाएं मेरे ब्लॉग पर आने में. प्लीज .....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर गीत, कान्हा तो है सबका प्यारा।

समयचक्र ने कहा…

bahut sundar bhavapoorn prastuti...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति| धन्यवाद|