हम अपने ह्रदय की कहैं किसे
यहाँ कौन है जो हमको बांचे
सब रसिक यहाँ सुनने वाले
है कोई यहाँ जो हममे झांके
हम काव्य पाठ करने वाले
भीतर तूफ़ान भी रखते हैं
कोई कभी ज़रा छुए हमको
हम अपनी आँख भी भरते हैं
हम दर्द संजोते भीतर ही
तुम सुन हमे दर्द मिटाते हो
हम अपने घाव कुरेदते हैं
तुम उनसे औषधि पाते हो
अपने अन्दर की पीड़ा को
हम शब्दों से तुम्हे बतातें हैं
जो हमने सहा वो लिखते हैं
तुम सुन कर बस मुस्काते हो
हम भांति भांति के वृक्ष सभी
तुम चुन चुन हमे बुलाते हो
कोई फूल है या हो फल कोई
तुम हममे भी भेद कराते हो
तुम्हारी चाहत के हर रस का
हम तुम्हे रसपान कराते हैं
गन्ने सी पाकर अपनी गत
हम तुम्हे हर रस दे पाते हैं
एक चाहत है गर तुम जो सुनो
कोई मर्म ना तुम किसीको देना
जो लगे तुम्हे कोई पीड़ा-ग्रस्त
गा कर कुछ छंद सुना देना
राजीव जाने के बाद हम
पाँचों में विलय हो जायेंगे
पर काव्य पाठ करने वाले
मरने के बाद ही जी पाएंगे
3 टिप्पणियां:
बहुत सही!
पीड़ा की बरसात में शब्द भी नम होने लगे हैं।
अति सुंदर।
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भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
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