शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

रीते पेट

आज नही था कल जैसा 
कल न जाने क्या होगा 
मौसम संग सम्पूर्ण आस
जो बिता गया कल न होगा

करवट बदलते पेट रीते 
चाँद तारे संग में जीते 
फूस कहीं सिर का न खोये 
विश्वास तुमेह भरना होगा

मौसम तेरी दहाड़ आजसी 
रीते बर्तन बजा गयी   
बेधुन रीते, जग हंसाई
धुन बर्तन भरना होगा

5 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर प्रेरक रचना। आभार।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रीता रीत मन,
सूना सा जीवन,
प्यास लगी है,
लिखने की धुन।

Shah Nawaz ने कहा…

बहुत बढ़िया!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति....