शनिवार, 16 अप्रैल 2011

भौर

पौ फटते ही
स्वप्नों के संसार ने
समेट ली चादर

सितारों जड़ी रात
प्रतिबिम्बित होती
जल के पटल पर
थरथराते बिम्ब

बहती समीर ने
झंकझोर कर अंतर्मन
धुप भरी गागर से
बिखेरे ज्यूँ टुकड़े
रात की यादों ने
फेर लिए मुखड़े  

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यही है भोर का आकर्षण।