बुधवार, 27 अप्रैल 2011

रच कर खेला

जो आया था वो चला गया 
यह  कहते लोगों को सुना 
जो आया है वो जाये कहाँ
जो चला गया वो था कहाँ 
रचने वाला रच कर खेला 
बना कर जोड़ा था ये मेला 
मेले का जो चला यह रेला
समझो जुड़ेगा अब नया
खेल खेलता खेलने वाला 
जोड़ तोड़ से जीवन बुनता 
टूटता जुड़ता इस माटी से    
घटा जमा का गणित गुना  

3 टिप्‍पणियां:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सुंदर रचना।

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देखिए ब्‍लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्‍वासी आज भी रत्‍नों की अंगूठी पहनते हैं।

Kailash Sharma ने कहा…

गहन सोच..बहुत सुन्दर सार्थक रचना..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

घटा जमा का गणित गुना।

वाह, लगता है यही जीवन रह गया है अब।