प्रिय तुम आओ तो, अंगना बुहार दूँ
पथ की चुभन को, होठों से संहार दूँ
थकन बरसों बरस सी चिपक गई
आओ तो उस सौतन को उतार दूँ
तुम संग बीती, दो घड़ी थी मेरे साथ
पवन संग खुशबु बनी, कुमकुम माथ
पथरीले पथ पथराई, फैली थी आँखें
नम हो बह निकली, दिखो निहार लूँ
सुहागन तू कैसी, ताने बने विश्वास
लौटेगा अंगना सावन, भीगी थी आस
गेसू खुले पागल धारा, तोड़े थी किनारे
तनिक द्वारे तो ठहरो, नजर उतार दूँ
2 टिप्पणियां:
वाह! बहुत बढ़िया..
बहुत ही सुन्दर।
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