चर्च के बाहर पड़ा पालना
उसमे नवजात को डालना
माँ है बाप है ये तो तय है
इसमें बदनामी का भय है
ये कर्म किस धर्म में आता हैअजान याद, तो है मुसल्लम
जनेऊ धरे, तो वो पंडित सम,
वाहे गुरु, तो शबदों में पारंगत
बाइबल की सीख का ज्ञाता है
स्वयं से जूझता फिरूं मै पूछता
ये कर्म किस धर्म में आता है
मस्जिद में वो अजान को तरसे
मन्दिर में खड़ा प्रसाद को तरसे
ग्रन्थि संग पर अरदास को तरसे
जीजस की जला कर मोमबत्ती वो
तरसे पूछता, जीवन जीने की चाह
ये कर्म किस धर्म में आता है
हे सूरज तुम कैसे अपना धर्म
इन धर्मों संग चल निभाते हो
जल चलते रहते हरपल कलकल
नैया धर्मो की अलग चलाते हो
प्रकृति का धर्मों से घर नाता है
ये कर्म किस धर्म में आता है
मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे
बनाये जिसने, गया हमें दे सारे
पीर पुजारी, पादरी, ग्रंथि हमारे
उसकी शक्ति तो सभी बतला रहे
पाँच हैं छठी ना कोई बताता है
ये कर्म किस धर्म में आता है
पर करूं क्या, मै यूँ खड़ा खड़ा
धर्म अपना ढूंढता, था पालने पड़ा
सर्व धर्म अपने लहू संग है दौड़ते
पूछता धर्म, क्यूँ मुख सभी मोड़ते
किसने बनाए, बांटे धार्मिक धर्म
ये कर्म धर्म, न कोई बताता है
3 टिप्पणियां:
बस मानवता, और क्या?
बहुत बढ़िया...
एक सच्ची और सार्थक रचना।
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ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
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