गरीब के घर आज ख़ुशी आई
बेटी के रूप में किलकारी पाई
तेरा कर्म सब पर बराबर होता
पर मेरे नसीब में गरीबी आई
चाहता हूँ न ये यौवन तक जाये
सुन्दरता न सम्मुख कभी आये
स्वप्नों की दुनिया में बस ये देखे
भूख समर्पण पसीने में नहायी
गरीब के घर आज ख़ुशी आई
नही फटा ये वस्त्र कभी पहने
कान न कभी सुने नाम गहने
तितली न कभी सखी हो इसकी
बस याद रहे ये है गरीब की जाई
गरीब के घर आज ख़ुशी आई
देह की अग्नि से दूर ही रहे सदा
श्रम अभाव लाचारी इसकी सम्पदा
दुल्हन पालकी प्यार से न वास्ता
खेले संग लिए घुटन और तन्हाई
गरीब के घर आज ख़ुशी आई
2 टिप्पणियां:
वाह, गरीब के घर आज खुशी आयी।
बहुत अच्छी कविता।
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