शनिवार, 9 अप्रैल 2011

विरला

सीधी राह ढूंढे न मिली 
पथरीले पथ विरले चले 
तू एक अकेला चल चला 
मंजिल पाने बन विरला 
कष्टों के घाव न दिखें तेरे
जो तेरे हैं वो न दिखें तेरे 
काँटों को अब फूल समझ
फूल महके, उसे दूर समझ 
चेहरा पढ़ तेरा न पता चले 
थकन की अग्न, न तू गले  
पथिक तुझे संग ले जायेंगे
राह  मंजिल की भटकायेंगे 
जो मंजिल तेरे समक्ष खड़ी
भुला, तुझे ओझल करवायेंगे
तू एक अकेला बन विरला 
देख पीछे पीछे सब आयेंगे    

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

राह पकड़ ले जो मन भाये,
आने दे जो पीछे आये।