घने वृक्ष
छाँव नही
चौपड़ है
दाव नही
माझी खड़ा
नाव नही
गहरी नदी
जल नही
दल हैं
बल नही
जल है
नल नही
मन्दिर हैभगवान नही
दुखते हैं
घाव नही
बस्ती है
इन्सान नही
इन्सान दिखें
इंसानियत नही
हैवानियत दिखे
हैवान नही
शव दिखे
मसान नही
रात दिखेभौर नही
जग दिखे
जगे नही
लाचारी है
लाचार नही
एक है
एक नही
आओ ढूंढे
फिर कहें
सब यहीं
नहीं नहीं
2 टिप्पणियां:
विकट इस द्वन्द में रहना।
bahut sundar..
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