रविवार, 29 मई 2011

क्यूँ एक ही सपना

मै एक अनोखा हूँ व्यापारी
चाहे खरीदों या तुम बेचो दमड़ी एक न जाये तुम्हारी
आओ पहले तुमेह दिखायुं मै अपना सामान
पसंद आये तो खरीदना वरना बढ़ाना ज्ञान
ये है मेरा गौदाम
सभी तरफ यहाँ धुल पड़ी है मकड़ी तक चुपचाप  पड़ी है
माल रखता हूँ बहुत पुराना अगर पसंद हो तो ले जाना
इन वस्तुओं का दाम न लूँगा, न बरता तो वापिस लूँगा 
इसलिए बरतो तब ही लेना वरना रखा यहीं छोड़ देना

ये देखो ये है सत्य
बहुत ही कम उपयोग में आया, मैंने युधिस्टर से था पाया
इधर देखो ये है आदर,
कुछ दशक ये खूब चला है मुझे दशरथ महल के बाहर मिला था
इस तरफ है माँ की ममता देखो
जितना पूजो कम न होगी
तुम थक जाओ, हो सकता है पर, इसकी आँखे नम न होगी
इसमें देखो ध्यान से, हर डिब्बे में अलग रस है
जीवन इन संग जी के देखो, रस में महकता पाओगे
बिन रस जीवन जीने में, तुम नीरस हो जायोगे
इधर देखो, ये है गुरु की मूरत
इनको देखो ध्यान से, भरा पड़ा हैं ज्ञान से
इनको हम कहते थे रिश्ते
चोट तुमेह लगती थी पर अंग इनके रिसते थे
आज ये तुमेह ढूंढें न मिलेंगे, ले के देखो परिवार बनेगें

अरे, मै ही बोलता जाता हूँ, तुम क्यूँ इतने चुप हो गए
जो पसंद है ले लो भाई, दाम न तुमसे कुछ लूँगा
बस एक पर्ची पे लिख देना
तुम मिटते मिट जायोगे, पर इनमे से किसी को भी धुल का फूल न बनाओगे    

क्या हुआ तुम गुम  हो गये, लगता है माल नहीं भाया
साथ वाली भी अपनी दुकान है, वहां है माल नया आया
मुझमे ज्ञान की थोड़ी है कमी  मेरे पुत्र ने ये संभाली है
पता नहीं क्या रखता है सुबह भरता शाम को खाली है

बूढ़े, तुम इधर से आना, उधर कहीं कुछ टूट न जाये
माल आया है अभी ये ताजा, जल्दी ही बिक जायेगा
तुने तो कुछ नही बनाया मैंने देख इसे देख कहाँ पहुँचाया
बोलो बाबु, क्या दिखायुं, समय न मेरा खोटी करना
जो है, जैसा है बस है, लेना हो तो बोलो, वरना अपना रास्ता लेना
हर रोज का दाम अलग है, डॉलर के साथ बदलता है  
मोल भाव यहाँ नहीं  होता है दाम एक ही रखता हूँ,
माल की मांग इतनी है कि हर रोज का ताजा रखता हूँ 

आओ दिखाऊं, ये झूठ है फरेब है
जो भी चाहो ले लो भाई दाम बहुत ही तेज है
इसको कहते बदनामी, नाकामी संग मुफ्त है
इसको देखो माँ की ममता, कपूत चुस्त, ये सुस्त है
इस छुरे की धार तो देखो पीठ में सीधा जाता है
बस देखते जाओ बाबु अब इसका राज ही आता है
इधर ये भ्रष्टाचार खड़ा है, आज न कोई इससे बड़ा है
ये ही पकड्वाए, ये ही छुड़वाए, इसका बड़े बड़ों से नाता है
जो चाहो वो बतलाओ, "हो जायेगा" के नारे में ये सारे काम करवाता है
ये देखो, ये कातिल रिश्ते
माँ-बेटा, पति पत्नी और कहने को बहिन भाई है
पर इनमे किसी की न बनती, कल ही संपत्ति बटवाई है
कुछ लोगे भी या देखोगे, बिन पैसे बस आँख सकोगे
चलो तुमेह नई चीज दिखायुं
ये देखो ये है "लालची का लालच" जिसने है आतंक मचाया
कई घर उजाड़े, कई देश खाए, ये रहता अपना बिगुल बजाये
बाबू जाओ, धंधे का समय है,
जो लेना हो दाम लिखा है, चुकाना, ले लेना
यदि ले जाने मै हो लाचारी हम उसका रास्ता बताते हैं
आप जब तक घर पहुँचो हम माल घर तक पहुंचाते हैं
माल सारा विदशी है अपनी न कोई जवाबदेही होगी
माल मिलेगा तभी, जब पहले पूरी कीमत अदा होगी

तभी मेरा सपना सा टूटा, बिस्तर से नाता छुटा
बेटा  मेरा पास खड़ा था, वो मुझसे लिपट गया 
बोला बापू क्यूँ एक ही सपना तू देखा करता है 
अपने लहू पर भरोसा रख तेरी राह ही चलता है 
मै तुझे लिख कर दूंगा, तब विश्वास हो जायेगा  
दूसरी दुकान न खोलूँगा पुत्र तेरा व्यापार बढ़ाएगा 
चाहे भूख से हम मर जाएँ, सर न कभी झुकने देंगे,
जिस माँ की कोख से पैदा हुए उसको न लज्जायेंगे   

4 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

सत्य को बाज़ार में खड़ा किया है बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई ...

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सच को बयां करती सुंदर रचना।

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गुडिया रानी हुई सयानी..
सीधे सच्‍चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सत्य के बाज़ार में बाज़ार का सत्य।