मंगलवार, 3 मई 2011

अंतर

नैन तुम्हारे नैन सही
पर मेरे नैन प्रतीक्षा हैं
कान तुम्हारे सुनने को 
पर मेरे कानो में दीक्षा है
जिव्या सबकी कहती है
पर मेरी करे समीक्षा है
हाथों को तुम हो चलाते
पर मेरे  मांगे भिक्षा हैं
पैरों से तुम दौड़ लगाते
पर मेरे पैरों में रस्सा है
ह्रदय तुम्हारा सब चाहे
पर मेरे कहे ये चस्का है
मस्तक पर रखे हो ताज
मेरा ठोकरों की शिक्षा है
ये अंतर देखो मेरा सबसे
अलग थलग कर रखा है

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अलग थलग सा अन्तर सबका मन रखता है।

निर्मला कपिला ने कहा…

भीड से अलग कुछ तो होना चाहिये। अच्छी पहचान है आपकी। शुभकामनायें।