जीवन जीता जाता हूँ
जीने का पर समय कहाँ
स्वछन्द हवा के झोंके
सूरज की किरणों के पथ
सागर कहता गोते खा
चाँद चांदनी के पथ से
गगन तारों की चादर से
धरा मौसमी फुआर से
बुलाते सब बिन चाहत
अंतर्मन तड़पता रहता
सभी पुकारें बिन लागत
मुझको संग चलने को
पर मै सौदा करता हूँ
मुफ्त का सौदा समय नही
1 टिप्पणी:
bahut sundar , raajeev ji
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