सोमवार, 16 मई 2011

पूर्ण आजाद

आज़ादी की वर्ष गाँठ पर आज़ादी बर्बाद है
सूनी सड़के कोठी झोंपड़ी मे छिड़ा विवाद है

आज़ादी पाने की हमने बड़ी कीमत चुकाई है
लाल बाल पाल और भगत की जान गवाई है

उनको निकाला हमने जो बाहर से आये थे
कुछ अब भी छुपे हैं, लगते उनके साये से

आज हमारे अपने दीमक से चाटे जाते हैं
ऊँचे दिखने वाले गुण उनके ही तो गाते हैं

उनकी भाषा उनसी आशा आधे कपड़े उनके
खाना पीना उनसा रहें यहाँ करें गुणगान उनके

क्यूँ न झुक के देखे वो ऐसे लोग भी बसते है
आज़ादी को न जाने भूख से ही आंते कसते है

उम्र अभी छोटी, कंधे पर बोझ, न खाई रोटी है
इस उम्र मे सीखतें जो वही शतरंज की गोटी है

आज़ादी पाने का क्या हमने ऐसा सपना देखा था
न रहे कोई शिक्षा से वंचित ऐसा सपना देखा था

दूध तरसता दूध्मुहा, कपडे क्यूँ तरसती नारी है
पेट है पहले शिक्षा से, यही गरीब की लाचारी है

सफेदपोश से ढका हिंद, करते है हिंद को बर्बाद
वही तिरंगा पकड़कर कहते, देखो हम है आजाद

आओ खाएँ कसम सभी, देंगे शिक्षा सबको काम
गरीब का अर्थ बदलेंगे शब्दकोश मे न होगा नाम

मिटाएँ जड़ से रोग सारे, जो हिंद को डालें बीमार
भ्रष्टाचार, बलात्कार, संग तोड़ेंगे  आतंकी हथियार

मिट जाने पर रोग हिंद के हम तब त्यौहार मनाएंगे
उस दिन को वर्षगांठ कहकर पूर्ण आजाद कहलायेंगे

2 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर,बहुत प्रेरक राजीव जी.
उत्तम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन, बाँध लिया वर्तमान को।