मंगलवार, 24 मई 2011

सब यहीं

घने वृक्ष 
छाँव नही 
चौपड़ है 
दाव नही 
माझी खड़ा 
नाव नही 
गहरी नदी 
जल नही
दल हैं 
बल नही 
जल है 
नल नही
मन्दिर है
भगवान नही 
दुखते हैं 
घाव नही 
बस्ती है 
इन्सान नही 
इन्सान दिखें 
इंसानियत नही 
हैवानियत दिखे 
हैवान नही 
शव दिखे 
मसान नही 
रात दिखे
भौर नही 
जग दिखे 
जगे नही 
लाचारी है 
लाचार नही  
एक है 
एक नही 
आओ ढूंढे 
फिर कहें 
सब यहीं 
नहीं नहीं

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विकट इस द्वन्द में रहना।

Kailash Sharma ने कहा…

bahut sundar..