सूरज दूर बैठा देखे भूखा रहे न कोई
अंधकार जो कहीं दिखे चमकाए वोई
सागर देख चंदा दौड़े पकड़ने को किरन
दुरी न कम प्रेम अजब भड़काए अगन
दूरियां न करती कभी प्रेम में कोताही
नयनन दूर होते तजे प्रेम जाने नाही
प्रेम न माँगा जाए कभी अपने आप ही आये
उपजाए न उपजे कभी उपजे कभी न जाए
अंधकार जो कहीं दिखे चमकाए वोई
सागर देख चंदा दौड़े पकड़ने को किरन
दुरी न कम प्रेम अजब भड़काए अगन
दूरियां न करती कभी प्रेम में कोताही
नयनन दूर होते तजे प्रेम जाने नाही
प्रेम न माँगा जाए कभी अपने आप ही आये
उपजाए न उपजे कभी उपजे कभी न जाए
4 टिप्पणियां:
काश आपकी कल्पना सच हो जाये।
दूरियां न करती कभी प्रेम में कोताही
नयनन दूर होते तजे प्रेम जाने नाही
....बहुत सुंदर भावमयी रचना...
प्रेम न माँगा जाए कभी अपने आप ही आये
उपजाए न उपजे कभी उपजे कभी न जाए
बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई
प्रेम न माँगा जाए कभी अपने आप ही आये
उपजाए न उपजे कभी उपजे कभी न जाए
एकदम सत्य वचन.
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