न तुम्हारी दिवाली बदली न बदली मेरी दिवाली
तुम पहले से खेल रहे हो मै भी पहले सी हूँ खाली
बाहर फटते फटाखे मुझको भीतर फोड़ रहे हैं
इस बरस भी न वो आये दिन बरस से दौड़ रहे हैं
मेरा अंगना कब लिपुंगी, कब दीवारें पोतुंगी
एक दिया अंगना बालूं मेरा फूल तो भेजो माली
चाँद से भेजा था संदेसा, बैरंग लौट के आया है
पवन निगाहें चुरा रही है, पता उसे न पाया है
तुम चिठ्ठी लिख कर भेजो मै अनपढ़ हूँ पढ़ लुंगी
हर अक्षर ऊँगली रख मै झोली तारों से भर लुंगी
भीगे नैन गगन निहारे दहलीज भिगो रहे हैं
जैसे पतझड़ जाने वाला, फैलेगी अब हरियाली
सुध भी खोई खोई बुध भी खुद को भी खो दूंगी
तरस तरस बरसों बीते अब साँसों को भी न लुंगी
तीज त्योहारों पर विरह अब नही सह पाती हूँ
हर दिन तीज मनाऊं, मै सपनों में खो जाती हूँ
अब तो आओ मेरे साजन, बैठी ले सुनी लाली
मेरी भी दिवाली बदले, खेलूं न रहूँ मै खाली
3 टिप्पणियां:
नई दिवाली आपकी सभी खुशियाँ वापिस लाये। दीवाली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
बड़ी ही सुन्दर रचना।
सुन्दर अभिव्यक्ति!
शुभकामनाएं!
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