जी चाहता है उन पर लिखूं
जो अपना देश चलते हैं
जनता की बर्बादी पर
धोखे के आँसूं बहाते हैं
पर ज्यूँ ही लिखने बैठा
कलम की नोक टूट जाती है
यदि बदलता हूँ कलम
स्याही तभी सूख जाती है
इस अचरज पर अचरज कर
मैंने एक अध्ययन किया
एक शिक्षा है जो मैंने पाई
गाँधी बन्दर मुख पर हाथ
कलम कवि की सच चलती
झूठ चाहकर भी न लिखती
चरित्र यदि समक्ष खड़ा हो
स्वयं ही चलती जाती है
मेरे चुने श्वेत वस्त्र धारकों
चाह कर भी न लिख पाउँगा
यदि कलम के विरुद्ध चला
कलम से विमुक्त हो जाऊंगा
कलम बिना जीना कठिन
जीते जी भी मरा कहलाऊंगा
तुम्हारे बिना कुछ न घटता
विरह कलम न सह पाउँगा
2 टिप्पणियां:
जिस पर मन चाहे, उस पर लिखें।
Rajjev ji man ko chhu gaye apke bhav.
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प्यार की परिभाषा!
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