कलम कवि की
कलम कवि की
बुधवार, 8 जून 2011
अकेले भले
पौध लगी
या
बीज लगा
पानी खाद
लगी लगी न लगा न लगा
अपनी राह
बढ़ता रहा
हुआ जवाँ
फल फूल छाँव
जिस लायक था
दिया बिना भाव
सहे चाहे घर्षण या घाव
न दुश्मनी न दोस्ती
दीमक चाटी
या
लता प्रेम से लिपटी
उम्र हुई चली चले
भीड़ से अकेले भले
1 टिप्पणी:
प्रवीण पाण्डेय
ने कहा…
राह चला चल तू अपनी बस।
8 जून 2011 को 7:39 pm बजे
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1 टिप्पणी:
राह चला चल तू अपनी बस।
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