गुरुवार, 30 जून 2011

प्रकृति

मेरा स्थान हवाओं सा 
मेरी महक है फूलों सी 
मै चहका करता पंछी सा
रक्षक बन चुभन शुलों सी 
बन बन फैला वृक्षों सा 
आरक्षण, अन्तरिक्ष सा
मेरी निर्मलता जल जैसी 
मेरी मिठास एक फल जैसी 
मेरी ममता में धरा गुण 
मेरी चाहत सरगम धुन 
तीखी किरणे सूरज सी 
शीतलता चंदा मूर्त सी 
तुम पूछते मेरा परिचय 
में प्रकृति डोलूं झूलों सी

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब, लाजबाब !

harrybawa007 ने कहा…

great bhaiya.....keep it up....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर