रविवार, 5 जून 2011

मकड़ी

मकड़ी तनिक समझा हमे 
कैसे बुना तुने ये जाला
अकेले लगी रही तू बुनने 
बुन डाले मोड़ संग आला
तेरी बुद्धि को हम सराहते
लगी रही लगन के रास्ते   
फंसने वाला न बाहर भागे 
कितने करीब रखे ये धागे 
मेहनत करना तुझसे सीखे 
सभी जोड़ मोड़ एक सरीखे 
तेरी कला का नही है सानी
जोड़ लगे पर गाँठ न जानी
बिन गांठ के तोडा जोड़ा 
हमे भी समझा तू थोडा 
अपने भी जब तोड़े जुड़े 
गांठ हमेशा ही बीच पड़े 
तुझे गुरु बना हम पूजें 
बता गांठ न हो एक दूजे     
मकड़ी तू तो मकड़ी है 
बुद्धि मानव से तगड़ी है

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सच कहा आपने।