शनिवार, 18 जून 2011

नासमझी हम नासमझ

सभी सीख हमें देते
नासमझी हम नासमझ 

सूरज कहे चलो समय रौशन 
चंदा शीतलता 
धरती ममता 
गगन समेटे 
तारे झिलमिल चादर बिछाये 
वृक्ष छाँव  संग फल दे जाए

पुष्प चाहे सब खुशबु में मुस्काय
जल जीवन का यूँ चलन 
पवन छुपी सब जग जाए 
अग्न लग्न को एक बिंदु 
भड़के सब लील जाए     

सभी सीख हमें देते
नासमझी हम नासमझ 
और कौन समझाये

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सीधे सच्‍चे ढंग से सीधी सच्‍ची बात।

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ब्‍लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
2 दिन में अखबारों में 3 पोस्‍टें...

निर्मला कपिला ने कहा…

प्रकृ्ति से हम सीख लेते ही नही। सही मे ना समझ हैं\ अच्छी रचना। शुभकामनायें।