लिखना तो सब जानते हैं
लिखना कोई नही चाहता
दशा दुर्दशा सब है अनुभव
बाँटना कोई नही चाहता
फसल संग खरपतवार खड़ी
छांटना कोई नही चाहता
घर में जो गंद बदबू उठा रही
झाड़ना कोई नही चाहता
रेशे सन के टूट रहें हैं घर के
बाँटना कोई नही चाहता
लड़ते लड़ते जीते जाते सब
टालना कोई नही चाहता
रेत की बुनियाद दुश्मन रखे
रेतना दुश्मन कोई न चाहता
आज फैली मोतिओं की माला
पिरोना फिर कोई नही चाहता
चाहत कहते सब फिर रहे
जानना कोई नही चाहता
1 टिप्पणी:
बेहतरीन चित्रकारी शब्दों की।
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