रात की खुमारी में
कोयल सी घंटी टूनटूनाई
समझ गया
तुम आई
तुम हर दिन
दुल्हन की तरह
सजी हुई आती हो
सोतों को जगाने
और मै
जागते ही
दिनचर्या में खो जाता हूँ
जब होश संभलता है
तुम जा चुकी होती हो
और मै फिर सो जाता हूँ
एक शंका
जिस दिन से तुम न आई
उस दिन से
दिन न निकलेगा
और
जहान सोता ही रह जायेगा
2 टिप्पणियां:
मन सूना तो दिन भी रात,
कौन करेगा हमसे बात।
शंका बेमानी कहाँ? इस समूचे विश्व में कई सारी छोटी छोटी दुनिया हैं, जिनके बाशिंदों की चेतना जैसे सो गई है... वे जागकर भी सो रहे हैं.
आपकी कविता की प्रतीकात्मकता बहुत पसंद आई.
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