ये सामाजिक तौर तरीके
सच छुपे, आडंबर दीखे
रिश्ते कहाँ खो गये पुराने
आज रिश्ते खींचते दीखे
मौसम ने बदली पगडंडी
बिन मौसम मौसम दीखे
कब सांझ ढली कब भौर हुई
समय गया जाता न दीखे
खिंच रहे हो हर क्षण को
असमंजस में,रबर सरीखे
टूटन ही है पास तुम्हारे
न टूटे कुछ ऐसा सीखे
सच छुपे, आडंबर दीखे
रिश्ते कहाँ खो गये पुराने
आज रिश्ते खींचते दीखे
मौसम ने बदली पगडंडी
बिन मौसम मौसम दीखे
कब सांझ ढली कब भौर हुई
समय गया जाता न दीखे
खिंच रहे हो हर क्षण को
असमंजस में,रबर सरीखे
टूटन ही है पास तुम्हारे
न टूटे कुछ ऐसा सीखे
6 टिप्पणियां:
चलो जोड़ने निकला जाये।
bahut sundar bhav...
सुन्दर रचना
न टूटे कुछ ऐसा सीखे
सुन्दर!
ना टूटे कुछ ऐसा सीखें ।
अवसर भी है, दस्तूर भी है तो आइये जोडते हैं ।
nice one..
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