रविवार, 19 सितंबर 2010

बिन बोले

गया दूर, सपने अधूरे, एक याद बाकी रह गई
सारी आशाएँ, मन की इच्छाएँ, मन मे रह गई
दो तनो को जोड़ने का, अनोखा बंधन होते तुम
तरसते कान, बरसती आँखें, ये बिछोड सह गई
हर कोई पूछता है तुम आकर भी क्यूँ  ना दिखे
हम चुप रहे पर आँखे बिन बोले ही सब  कह गई     
  

3 टिप्‍पणियां:

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) ने कहा…

सुन्दर रचना|
ब्रह्माण्ड

कडुवासच ने कहा…

... bahut badhiyaa !!!

Anamikaghatak ने कहा…

सुंदर भावो को उकेरा है आपने ..........बढ़िया