पुस्तकें नयी आतीं थीं
जो बड़ा होता उसे दी जाती थी
ना फटे कटे ना धागे छटे
शर्तें साथ लगाई जाती थी
पुस्तक को माता समझ
हम बार बार सिर से लगाते
चाहें कसम तुम कोई खिलाओ
पर विद्या माँ की कसम ना खाते
एक आती सारे पढ़ जाते
उसके बाद यादें संजो आते
जिनको पढ़ हम यहाँ हैं आए
आलस्य बने आविष्कार छाए
वही अपनी खोजें देखो
पुस्तक को चबा रही हैं
धीरे धीरे लुप्त कर उन्हें
अंधेरों मे दबा रही हैं
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