ज़िंदगी जलती नहीं
जला दी जाती है
साँसे यूँ बहती नही
बहा दी जाती है
सूखी रहती हैं आँखे
चाहें जो उम्र हो
तालाब बन ना सड़ें आंसूं
नदी उनकी बहाई जाती है
प्रेम तरसता है
फैलने को
फैलता नहीं
बाँध दिया जाता है
नफरत रुकना चाहती है
पर उसका अपना मकान नहीं
कभी इसके घर कभी उसके घर
ठहरा दी जाती है
स्वतंत्र हम
परतंत्र सच
क्या प्रक्रति कभी
आज़ादी मनाती है
2 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा!
बहुत सुन्दर रचना , ...!!!
अथाह...
!!!
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