सोमवार, 20 सितंबर 2010

सुखद सपना

हम इंसान हैं इंसान को इंसान देखना चाहतें हैं
मानवता का पूज्य वो भगवान देखना चाहतें हैं

धर्म कर्म हो अपने साँझा, ना लगे किसी को ठेस
अपना हो एक ऐसा देश, जिसमे हो लुभावने वेश
रंग बिरंगी चाहतों का आकाश देखना चाहते हैं
हम इंसान हैं इंसान को इंसान देखना चाहतें हैं......

बोलें हम ऐसी बोली, ना झगडा हो ना चले गोली
दुश्मन ना कोई उपजे, लगे फसल प्रेम की बोली
एक ऐसा अपना प्यारा, किसान देखना चाहतें हैं
हम इंसान हैं इंसान को इंसान देखना चाहतें हैं......

स्वतंत्र हो हर इन्सान, परिंदों को हो आसमान
दूर तक फैलाए महक, ऐसे फूलों का गुलिस्तान
ना कांटे ना चुभन, बागबान एक ऐसा चाहते हैं
हम इंसान हैं इंसान को इंसान देखना चाहतें हैं......

आदर प्रेम और दुलार, पायें बांटे बस हम प्यार
हर तरफ हो खुशियाँ, मुस्काता हो अपना संसार 
नफरतों की जड़ मिटाए, फिर चाणक्य चाहते हैं 
हम इंसान हैं इंसान को इंसान देखना चाहतें हैं......

1 टिप्पणी:

Sam ने कहा…

aap ki kavitayein seedhe hridey mein sama jati hein bhaiya..keep writing..Sam