बुधवार, 23 नवंबर 2011

करो नेत्रदान

सरपट बस दौड़ती जाती थी
यात्रियों को नींदिया आती थी
पर एक बच्चा माँ संग बैठा
प्रश्नों की झड़ी लगाता था
सहयात्री कच्ची नींद से उठ
गुस्से में घूर उसे खाता था
माँ चमक में न दीखता सूरज
रात में क्यूँ चंदा दीखता है
आदमी औरत अलग अलग
क्यूँ पेड़ पीछे जाता दीखता है
ये पहाड़ क्यूँ पीछे जाते हैं
बादल संग में क्यूँ आते हैं
बच्चे के प्रश्नों को सुन कर
माँ आँखे भर भर लाती थी
मंदबुद्धि का पक्का है इलाज
बोला क्यूँ आँख भर लाती हो
माँ बोली ये नहीं है मंदबुद्धि
कुशाग्र पुत्र था जन्म से अँधा
अभी इलाज करा पाए हैं नैन
पहली बार देखता गौरखधंदा
तनिक भैया तुम दो ध्यान
दिल में ठानो करो नेत्रदान          

3 टिप्‍पणियां:

Sam ने कहा…

great bhaiya..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आवश्यक कार्य, मरने के पहले।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति...