बादल ने ली है अंगड़ाई
क्यूँ याद तुम्हारी आई
रिमझिम फुहार पड़ते
हिचकी पे हिचकी आई
बादल ने ली है अंगड़ाई
क्यूँ याद तुम्हारी आई
रिमझिम फुहार पड़ते
हिचकी पे हिचकी आई
क्यूँ याद तुम्हारी आई
रिमझिम फुहार पड़ते
हिचकी पे हिचकी आई
मौसम को सहते रहते
पर तुमसे कुछ न कहते
एक जाता दूजा आता
पर न हमको डिगा पाता
बारिश की ये जो बूंदे
छीने हैं मेरी तन्हाई
सोचो तो क्या तब होता
जो मौसम न ये आता
मिलने की एक अग्न का
अहसास न हो पाता
अंगो ने तोडा मौन
ज्यों ही चले पुरवाई
विरहन की विरह देखो
रब से न देखि जाती
वो कैसे सह रही है
सहन न देखि जाती
उस विरहन की अग्न को
भडकाने बूंदें आईं
क्यूँ याद तुम्हारी आई
रिमझिम फुहार पड़ते
हिचकी पे हिचकी आई
4 टिप्पणियां:
खूबसूरत एहसास
बहुत ही खूबसूरत अनुभव।
बहुत खूब.
khoobsurat bhaav..
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