क्या सीधा रास्ता रास न आता
क्यूँ उलटी चलता राह तू
पर्वत गिराए घाट में
क्यूँ पर्वत चढ़ता घाट से तू
दोस्त दुश्मन बनते देखे
दुश्मन को दोस्त बनाता तू
लोग हमेशा चढ़ते देखे
क्यूँ उतरता जाता तू
पैसा सबका पीर है
तू पीर पे पैसा बहता है
घर उजाड़ कर दूजे का
अपना घर बनाते, सब दिखे
तू एक निराला है, राजीव
घर अपना ही उजाड़ता है
सब रात में करते, घर में गंद
तू रात में घर बुहारता है
लोग एक भला कर गाते है
तू कर के क्यूँ छुप जाता है
सब ज्ञान के प्रवचनों से
भंडार धन का भरते है
तू धन अपना ही लगवा कर
ज्ञान के चक्षु खुलवाता है
सब सुख पाने को लोग देख,
हर हथकंडा अपनाते है
क्यूँ पगले छोड़कर तू सुख अपने
दूजे का सुख ही चाहता तू
लोग बावला समझ छोड़ देते है
जो ऐसी राह अपनाता है
पर ऐसे पगले सर माथे
जो उलटी राह अपनाता है
3 टिप्पणियां:
सीधी सीधी राह चला चल,
जीवन बेपरवाह चला चस।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
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ब्लॉगसमीक्षा की 23वीं कड़ी।
अल्पना वर्मा सुना रही हैं समाचार..।
great bhaiya..
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