मंगलवार, 5 जुलाई 2011

बूंद ओस की मेरी कब थी

बूंद ओस की मेरी कब थी 
रात आई सुबह सरक गयी 
मै प्यासा सोचता रह गया
क्यों आई जग लज्जा गयी 

आई तितली छायी मंडराई 
पर मेरी वो भी हो ना पाई 
देख बगल में खिलता नया
झपक झपक  झपक गयी

खिली धुप में खिला यौवन 
पवन चली झुर झुर्रा गयी 
सांझ हुई अब सब चल दिए
पत्ती टपक टप टपका गयी  
 

2 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

खिली धुप में खिला यौवन
पवन चली झुर झुर्रा गयी
सांझ हुई अब सब चल दिए
पत्ती टपक टप टपका गयी

बहुत गहन सारगर्भित प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नादजनित शब्दों से उपजे समान से भाव।