बूंद ओस की मेरी कब थी
रात आई सुबह सरक गयी
मै प्यासा सोचता रह गया
क्यों आई जग लज्जा गयी
आई तितली छायी मंडराई
पर मेरी वो भी हो ना पाई
देख बगल में खिलता नया
झपक झपक झपक गयी
खिली धुप में खिला यौवन
पवन चली झुर झुर्रा गयी
सांझ हुई अब सब चल दिए
पत्ती टपक टप टपका गयी
2 टिप्पणियां:
खिली धुप में खिला यौवन
पवन चली झुर झुर्रा गयी
सांझ हुई अब सब चल दिए
पत्ती टपक टप टपका गयी
बहुत गहन सारगर्भित प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
नादजनित शब्दों से उपजे समान से भाव।
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