चहुँ ओर भीड़ का सन्नाटा
अंदर क्यूँ चले चीख पुकार
जग खड़ा पर चुप्पी साधे
ना सुनता मन की चित्कार
असमंजस तन मन देखे
किसे सुनाए भीतरी गुहार
चला लिए चाह कांधे की
भिगो जिसे निकले गुबार
सोच तुमेह हम ज्यूँ आए
तुम स्वयं कर रहे पुकार
अपना मन अपनी शांति
खोज करूँ होवे छुटकार
2 टिप्पणियां:
जब मन की शांति मिल जायगी तब सब दुख दूर हो जायेंगे
मन को चाहिये, नीरवता का विस्तार।
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