गुरुवार, 21 जुलाई 2011

ये कैसी शांति है

हर ओर क्रांति  है
ये कैसी शांति है

कितना कर्कश शोर है
यह भीड़ किस ओर है
बचाओ बचाओ की आवाजें हैं
चुनाव में हुई जीत के बाजें हैं
आवाजों में रुदन ओर हंसी
ये सच है या फिर भ्रान्ति है
ये कैसी शांति है..............................

ओजोन परत में छिद्र है
धरती पर त्राहि त्राहि है
सुखी गंगा सुखी जमुना
सूखी सूखी धरती सारी है
जल बहता रहता कल कल
क्या ये रतिली भ्रान्ति है
ये कैसी शांति है................................

पत्र प्रकाशित हुआ
आओ बचाएँ देश को
जल बचाएँ थल बचाएँ
और बचाएँ वेश को
पर नजर में आ रहा था
जो मन में समां रहा था
जैसे लिखा हो वहां पर
हर खबर की दास्ताँ पर
राड़ बचाएँ द्वेष बचाएँ
और बचाएँ ठेस को
अस्त्र बचाएँ शस्त्र बचाएँ
बचाएँ दोगले भेष को
राज बचाएँ ताज बचाएँ
चाहें बेचे अपने देश को
कुर्सी खींचें साड़ी खींचे
खींचे माँ के केश को
मंदिर मस्जिद सब तोड़े
तोड़े हर परिवेश को
भाई भतीजावाद फैलाकर 
जाती पाती का भेद बताएँ
आओ अपने घर को आग
अपने चिरागों से लगवाएं
हर उस सपने को लूटें
जिसमे मिलती शांति है
क्या ये गहरी क्रांति है
ये कैसी शांति है

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आग भभक कर नहीं लगी है, पर सुलग तो न जाने कब से रही है।