सोमवार, 11 जुलाई 2011

साहित्य

गया था ढूँढने
लिखने को
मांग है जिसकी
बिकता है जो

क्या सोचा क्या पाया
जो पाया न ला पाया

साहित्य के नाम पर
वास्तविकता के दाम पर
ऐसे ग्रन्थ जिनका
न आदि था न अंत
अपना आधिपत्य जमा रहे हैं
उनके रचयिता
साहित्य के नाम पर
उन्हें भुना रहे हैं

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

औरों के लिये लिखना, न लिखने के बराबर है, तुलसीदास सा लिखिये स्वान्तः सुखाय।