आकाश पर उड़ने वालों सुनो
तुमेह धरती का है ये कहना
ऊँचा उड़ो चाहे तुम नभ छुलो
पर धरती पर तुम्हे है रहना
नभ पाने के तुम स्वप्न लिए
जीवन का चौथा हिस्सा जिए
जो मिला था उसकी बेकद्री
राहें जो चुनी सारी दर्द भरी
बिन पंख तुने उड़ना चाहा
कटा सा तू धरा पर आया
इसलिए तो कहता हूँ ये मै
आकाश पर उड़ने वालों सुनो
जागे हो या तुम सोये हुए
स्वप्नों में रहे सदा खोये हुए
मर्ग वाली तर्ष्णा सम्भाली थी
सच वाली जगह सब खाली थी
मुट्ठी बंद पर क्या मांगते तुम
मुट्ठी खोलो तब तुम पाओगे
इसलिए तो कहता हूँ ये मै
आकाश पर उड़ने वालों सुनो
हर रिश्ता है तुमेह लुभाने को
जीवन में कुछ समय बिताने को
पड़ाव आते ही उतरते जायेंगे
संग तेरे कभी भी ना आयेंगे
फिर क्यूँ तू उड़ता रहता है
क्यूँ सच को ना तू सहता है
इसलिए तो कहता हूँ ये मै
आकाश पर उड़ने वालों सुनो
आकाश धरा का प्रेम है ये
वो देता धरा को जीवन भर
तू देख वो दोनों दूर सदा
रहते संग ज्यूँ ना हो जुदा
जो छोड़ धरा को नभ को चला
नभ ने उसे धरती पर ही मला
इसलिए तो कहता हूँ ये मै
आकाश पर उड़ने वालों सुनो
7 टिप्पणियां:
आसमान म्ं उड़ने वाले, मिट्टी में मिल जायेगा।
हकीकत से जुडना ज़रूरी है .. अच्छी अभिव्यक्ति
यहाँ आपका स्वागत है
गुननाम
धरा से जुड़ा है जीवन ,
आसमान तो भ्रम मात्र है!
सुन्दर सन्देश!!
वाह! बहुत सुन्दर संदेश्।
ऊँचा उड़ो चाहे तुम नभ छुलो
पर धरती पर तुम्हे है रहना
बहुत सार्थक सन्देश..सुन्दर प्रस्तुति
आकाश में उड़ते यह ना भूले की आखिर पैर जमीन पर ही टिकने हैं ...
सुन्दर !
सुंदर,सार्थक संदेश.आभार.
सादर,
डोरोथी.
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