ता उम्र धकेला था जीवन
अब मंजिल की सुध आई
चलने से पहले दिखे थका
चल अब तो चलना है भाई
पथरीले पथ चलते विरले
तू उन विरलों में एक बन
राह के राहगीर दिखेंगे तुझे
तू राह तेरी अपनी ही चुन
मंजिल है सबकी अलग अलग
तुझे अपनी मंजिल ही जाना है
राहगीरों की उस भीड़ में भी
तुझे अपना जहान बसना है
देखना, सुनना तुझे सबको है
पर तुझे तेरा ही राग बनना है
राहगीरों राह के भटके जो मिले
पर तुझे ढूँढना तेरा ठिकाना है
तू पा लेगा ये तुझे है पता
अब चल मंजिल की ओर तू
चाहे धुप जले या सांझ ढले
चल पथिक पायेगा भोर तू
अब चल तुझको बस चलना है
मंजिल चलके है कब आई
चलने से पहले मत दिख थका
चल अब तो चलना है भाई
1 टिप्पणी:
bahut achchhi rachana ..........
अब चल तुझको बस चलना है
मंजिल चलके है कब आई
चलने से पहले मत दिख थका
चल अब तो चलना है भाई
prernadayak hai ye panktiyaa
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