पथ पर निकला एकांकी संग ले चला बीती झांकी
जब थकन एहसास हुई तुम तभी से मेरे साथ हुई
उस क्षण जो तुमने बोला कानो में था मिश्री घोला
थकन गई किस राह निकल पता चला नही बोला
हर पथ पर मिलनेवाला मेरी ओर देखता तुम पर
तुम बस एक मुस्कान फैला हर लेती गुमसुम पर
हर राहगीर न पाता होगा हमसफर जो हो तुम सा
तभी तो मंजिल दूर लगे उन्हें जिसे पा लें हम सा
ये जीवन की लहरें हैं उठा पटक ले झपट हमे चलें
जो न हो हमसफर तुमसा मंजिल है दूर अभी खले
अरे पथिक सम्भल पहुंच कर मंजिल के तू निकट
रेतीली भ्रांतियां कर रही राजीव का पथ और विकट
4 टिप्पणियां:
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ब्लॉग बुलेटिन पर की है मैंने अपनी पहली ब्लॉग चर्चा, इसमें आपकी पोस्ट भी सम्मिलित की गई है. आपसे मेरे इस पहले प्रयास की समीक्षा का अनुरोध है.
स्वास्थ्य पर आधारित मेरा पहला ब्लॉग बुलेटिन - शाहनवाज़
बहुत खूब ... सुन्दर कविता है ... भाव मय ...
अभी बहुत चलना है साथी, अभी बहुत चलना है..
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