बिन बंधे सफों सा
पड़ा हूँ सुनसान बस्ती में
समीर का हर झोंका
उड़ा जाता है कुछ सफे
तरसता हूँ एक हस्ती को
जो बांधे मुझे करीने से
या उड़ जाएगी मेरी हस्ती
इन सफाखोरों की बस्ती में
पड़ा हूँ सुनसान बस्ती में
समीर का हर झोंका
उड़ा जाता है कुछ सफे
तरसता हूँ एक हस्ती को
जो बांधे मुझे करीने से
या उड़ जाएगी मेरी हस्ती
इन सफाखोरों की बस्ती में
2 टिप्पणियां:
bahut khoob...........
बहुत खूब।
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