गर्मी पुरजोर बहता पसीना
लू के थपेड़े थपेड़ रहे थे
कपडे तन पर लिपट रहे थे
ऐसे में कुछ नन्हे देखो
नंगे पांव से दोड़ रहे थे
मौसम से वो अनजान
रुके वाहनों से चिपट रहे थे
उनके लिए नया नहीं था
लू चले, चले शीत लहर
लेट जमी पर खेल दिखाते
गोले में से थे आते जाते
विलासता से भरी गाड़ियाँ
बंद कांच में, दुरी बनाते
अनदेखा नन्हो को करते
हँसते हँसते मांग रहे थे
कोई कुछ देता, कोई कुछ
कोई गाली से पेट था भरता
कोई आधा खाया फल देकर
अमीरी का था भाव बताता
क्या भूख बाहर वाले को कम
भीतर वाले को ज्यादा लगती है
क्यूँ छाले नंगे पावों में कम
जूते वालों को ज्यादा पडतें हैं
तुम भीतर वाले भीतर भीतर
क्यूँ घुटे घुटे दीखते रहते हो
बाहर वालों की देख हंसी
क्यूँ लूटे लूटे दीखते रहते हो
जिनके सहारे तुम जीते हो
उनपर भी जीना सीखो तुम
वो वो हैं तभी तुम तुम हो
अपना चीर सीना देखो तुम
बाहर भीतर के अंतर की
पीड़ा का अहसास होगा
बाहर दुखी हंसी तुमसे अच्छी
तुमको दोनों का पास होगा
लू के थपेड़े थपेड़ रहे थे
वृक्ष नहीं थे हिलते डुलते
पंछी सब खामोश पड़े थे
सूरज का था क्रोधित माह
धरती अग्नि के छाले पड़े थे
ऐसे में चलना था कठिनकपडे तन पर लिपट रहे थे
ऐसे में कुछ नन्हे देखो
नंगे पांव से दोड़ रहे थे
मौसम से वो अनजान
रुके वाहनों से चिपट रहे थे
उनके लिए नया नहीं था
लू चले, चले शीत लहर
बर्फ की वर्षा में बहे शहर
या धरती पर टूटे कहर लेट जमी पर खेल दिखाते
गोले में से थे आते जाते
विलासता से भरी गाड़ियाँ
बंद कांच में, दुरी बनाते
अनदेखा नन्हो को करते
नन्हे अन्दर की चाह बनाते
बिन बोले अन्दर क्या देखा हँसते हँसते मांग रहे थे
कोई कुछ देता, कोई कुछ
कोई गाली से पेट था भरता
कोई आधा खाया फल देकर
अमीरी का था भाव बताता
अचरजी बात मगज को खाती
क्या प्रकृति दोनों में भेद करती है
क्यूँ लू बाहर वालों को कमभीतर वाले को ज्यादा लगती है
भीतर वाले को ज्यादा लगती है
क्यूँ छाले नंगे पावों में कम
जूते वालों को ज्यादा पडतें हैं
तुम भीतर वाले भीतर भीतर
क्यूँ घुटे घुटे दीखते रहते हो
बाहर वालों की देख हंसी
क्यूँ लूटे लूटे दीखते रहते हो
जिनके सहारे तुम जीते हो
उनपर भी जीना सीखो तुम
वो वो हैं तभी तुम तुम हो
अपना चीर सीना देखो तुम
बाहर भीतर के अंतर की
पीड़ा का अहसास होगा
बाहर दुखी हंसी तुमसे अच्छी
तुमको दोनों का पास होगा
2 टिप्पणियां:
उत्साह जगाती पंक्तियाँ।
straight from the heart..
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