मंगलवार, 9 अगस्त 2011

जानो हम कहते हैं

आंधी चली धूल उठी
धरती धुलम धूल पटी
खड़े खड़े आँखे मलते हो 
चले चलो मंजिल पहुँचो  
तो जानो, मंजिल पाना इसे कहते हैं

प्रेम प्रेम सब कहते है
प्रेम की चाह में रहते हैं
नफरत की दुनिया में
पहल प्रेम की करके देखो
तो जानो, प्रेम प्रेम इसे कहते हैं

दोष दूजे में सब गिनते हैं
सीख देने को धर्म कहते हैं
आइना देख जो तुम झेंपो
उतार अपने अवगुण फेंको
तो जानो, सच्ची सीख इसे कहते हैं

अपना अपना क्यूँ कहते हो
जब एक परिवार में रहते हो
लाओ बाँटो सब रिश्तों में
चाहे ना पाओ तुम अंत में
तो जानो, परिवार इसे कहते हैं

अपना धर्म सच्चा कहते हैं
दूजे  धर्म को ना सह्तें  हैं
दूसरों के दुःख समझ तुम अपने
सारे सुख बाँट दुःख जो भगाओ
तो जानो, सच्चा धर्म इसे कहते हैं 

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुख दुख बाट लें, और क्या शेष है मानवता के लिये।