बुधवार, 24 अगस्त 2011

चमकेगा तेरा नाम रे

पंक्ति लम्बी, भीड़ बड़ी है
तुमसे पाने को वरदान रे
मै भी कुछ मांगना चाहता
मुझको समझ न ज्ञान रे
कोई कहता धन तू मांग
कोई वैभव का वरदान रे
मेरी बुद्धि काम न करती
हो गई बिलकुल जाम रे
मेरा नंबर जब आगे बढ़ता
मेरे घटते जाते प्राण रे
नंबर आया क्या मांगूंगा
गले में अटकी जान रे
एक आया मुझको समझाने
तू मांग अभय वरदान रे
सोचा जीना है अभिशाप
क्या करूंगा रखकर प्राण रे
तभी मेरा एक वंशज आया
बोला बन जाओ धनवान रे
धन रखना मुश्किल जग में
कैसे उसका रखूँगा ध्यान रे
अमीरी का झोंका भी आया
मांग तू रहना आलिशान रे
मेरा आधा अंग भी आया
बोला क्यूँकर भौतिक मांग रे
माँगना है तो तुम मांगो
रहे सदा प्रभु का ध्यान रे
जाना आना लगा रहेगा
ना जाए तुम्हारा नाम रे
ज्यूँ ही मेरा नंबर आया
कुछ न सुझा ज्ञान रे
बस मै झुकता चला गया
प्रभु दर्शन ही वरदान रे
बोले तू चतुर है प्राणी
जा कर अच्छे काम रे
चाहे जग में कुछ न चमके
चमकेगा तेरा नाम रे
चमकेगा तेरा नाम रे

3 टिप्‍पणियां:

Ojaswi Kaushal ने कहा…

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Rakesh Kumar ने कहा…

आपकी सुन्दर प्रस्तुति अच्छी लगी.
पर नाम के लिए ही अच्छे काम करना से ज्यादा अच्छा है
सदा अच्छे कार्य करते रहना ,चाहे नाम हो या न हो.
यानि निष्काम कर्म.
अच्छे कार्य करने के लिए ही 'सद् बुद्धि' की आवश्यकता है.
गायत्री मन्त्र में 'सद् बुद्धि' की ही मांग की गई है.

आभार.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अनुपम भाव श्रंखला।