शनिवार, 13 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस

बो कटा का स्वर रह रह कर कानो मे पड़ता
बच्चे बड़े उत्साहित होते जब पेच कोई लड़ता
छते पटी पड़ी थी लगता कोई सैलाब उमड़ रहा
आँखे सबकी गगन देखे धरती ने ना कुछ कहा
छत के नीचे न कोई दिखे उपर सारा देश खड़ा
कोई सोचो एक बार क्या बिन छत है कोई पड़ा
रंगो का सैलाब गगन मे, पतंग थी रंग बिरंगी,
चिड़ा, डंडा, परी, दुरंगी, कंदील बांधे थी तिरंगी 
एक छत दो भाई उड़ा कर अपने को था काटता 
अजब किस्म का त्यौहार ये काटता ओर बांटता
बिन छत त्यौहार मनाता, छत देख ठोकरें खाता 
सूखे झाड़ चहुँ ओर घूमा वो गरीब पतंगे था पाता
कोई काटे कोई बांटे, कोई रंग बिरंगी दुनिया छांटे
१५ अगस्त कैसे भुलाए एक रात पहले घर जो बांटे
माँ, मौसी अलग हो गई, मिलना चाहे भाई भाई
आओ हम उसको ढूंढे, जो बढाता बीच की खाई
१४ हो या १५ या एक करती नयी तिथि कोई आए
एक हो जननी तब ही हम स्वतंत्रता दिवस मनाए      

3 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

माँ, मौसी अलग हो गई, मिलना चाहे भाई भाई
आओ हम उसको ढूंढे, जो बढाता बीच की खाई
१४ हो या १५ या एक करती नयी तिथि कोई आए
एक हो जननी तब ही हम स्वतंत्रता दिवस मनाए .
..वाह! बहुत ही प्यारा सन्देश.... यही भाव तो सबमें जगाना है...
रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सार्थक सोच और उसकी सुन्दर अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबको शुभकामनायें।